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केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट

केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। केंचुआ मिट्टी में पाये जाने वाले जीवों में सबसे प्रमुख है। ये अपने आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर गोबर को खाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हैं जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाते

हैं ।

वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है।

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केंचुआ खाद की विशेषताएँ :

इस खाद में बदबू नहीं होती है, तथा मक्खी, मच्छर भी नहीं बढ़ते है जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है। फसलों की ऊपज में वृद्धि होती है। इस खाद का प्रयोग मुख्य रुप से फूल-पौधों एवं किचेन गार्डेन में किया जा सकत है जिससे फूल एवं फल के आकार में वृद्धि होती है। इससे सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस 1 से 2 प्रतिशत, पोटाश 1 से 2 प्रतिशत मिलता है।

  • · इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता है।

  • · प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है।

  • · केचुँआ खाद की केवल 2 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर आवश्यक है।


केंचुआ खाद कैसे तैयार करें?

पहली बार प्रक्रिया शुरू करते समय गोबर के ढेर में थोड़े से केंचुए डाल कर गोबर को जूट के बोरे से ढक दिया जाता है। नमी के लिए बोरे के ऊपर समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है। केंचुए डाले गए गोबर को खाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हैं और अपने पीछे वर्मी कम्पोस्ट बना कर छोड़ते जाते हैं।


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केंचुआ खाद का उद्देश्य

· गोबर एवं कूड़ा-कचरा को खाद के रूप में बदलना.

· रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाना.

· भूमि की उर्वरता शक्ति बनाये रखना.

· उत्पादन में आयी स्थिरता को समाप्त कर उत्पादन बढ़ाना.

· उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार लाना.



सावधानियां

  • प्रति सप्ताह बेड को एक बार हाथ अथवा पन्जे से पलट देना चाहिए ताकि गोबर पलट जाये और वायु संचार हो जाये ताकि बेड में गर्मी न बढ़ने पाये।

  • किसी भी प्रकार ताजा गोबर न प्रयोग किया जाये क्योंकि ताजा गोबर गर्म होता है, इससे केंचुए मर सकते हैं।

  • बेड में सदैव 35-40 प्रतिशत नमी बनायी रखी जाये इसके लिए मौसम के अनुसार समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये. वर्षा ऋतु में पानी छिड़कने की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है. शरद ऋतु में दूसरे-तीसरे दिन पानी का छिड़काव एवं ग्रीष्म ऋतु में रोजाना पानी छिड़काना चाहिए।

  • सांप, मेंढक, छिपकली से बचाव हेतु मुर्गा जाली प्लेटफार्म के चारो और लगानी चाहिए ताकि दीमक, चींटी से बचाव हेतु प्लेटफार्म के चारों तरफ नीम का काढ़ा प्रयोग करते रहना चाहिए।

  • बेड का तापमान 8 से 30 डिग्री सेंग्रे. से कम-ज्यादा न होने दिया जाये, 15 से 25 डिग्री. सेग्रे. तापमान पर यह सर्वाधिक क्रियाशील रहते है तथा खाद शीघ्र बनती है।

  • हवा का संचार पर्याप्त बना रहे किन्तु रोशनी कम से कम रहे इस बात का ध्यान रखना चाहिए।


 
 
 

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